रामधारी सिंह दिनकर 

राष्ट्र कवि दिनकर आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। बिहार प्रांत के बेगूसराय जिले का सिमरिया घाट कवि दिनकर कीजन्मस्थली है। इन्होंने इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की। साहित्य के रूप में इन्होंने संस्कृत, बंग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया था। ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता।

रामधारीसिंह दिनकर को राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत, क्रांतिपूर्ण संघर्ष की प्रेरणा देने वाली ओजस्वी कविताओं के कारण असीम लोकप्रियता मिली।उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ नाम से विभूषित किया गया।

भारत के स्वतंत्र होने के पश्चात दिनकरजी मुख्य रूप से गद्य सृजन की ओर उन्मुख हो गए। उन्होंने स्वयं कहा भी है- ‘सरस्वती की जवानी कविता है औरउसका बुढ़ापा दर्शन है।’

दिनकरजी के उत्तरवर्ती जीवन में यही दार्शनिकता तथा गूढ़ वैचारिकता गद्य में प्रकट हुई। दिनकर के साहित्यिक जीवन की विशेषता यह थी किशासकीय सेवा में रहकर राजनीति से संपृक्त रहते हुए भी वे निरंतर स्वच्छंद रूप से साहित्य सृजन करते रहे। उनकी साहित्य चेतना राजनीति से उसीप्रकार निर्लिप्त रही, जिस प्रकार कमल जल में रहकर भी जल से निर्लिप्त रहता है।

‘संस्कृति के चार अध्याय’ एक ऐसा विशद, गंभीर खोजपूर्ण ग्रंथ है, जो दिनकरजी को महान दार्शनिक गद्यकार के रूप में प्रतिष्ठित करता है। अध्यात्म, प्रेम, धर्म, अहिंसा, दया, सहअस्तित्व आदि भारतीय संस्कृति के विशिष्ट गुण हैं।

दिनकरजी स्पष्ट घोषणा करते हैं- ‘आज सारा विश्व जिस संकट से गुजर रहा है, उसका उत्तर बुद्धिवाद नहीं, अपितु धर्म और अध्यात्म है। धर्म सभ्यता कासबसे बड़ा मित्र है। धर्म ही कोमलता है, धर्म दया है, धर्म विश्वबंधुत्व है और शांति है।’

जन्म:  23 सितम्बर 1908     निधन : 24 अप्रैल 1974

स्वामी सहजानन्द सरस्वती

स्वामी सहजानन्द सरस्वती (22 फरवरी 1889 – 26 जून 1950) भारत के राष्ट्रवादी नेता एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। वे भारत में किसान आन्दोलन के जनक थे। वे आदि शंकराचार्य सम्प्रदाय के दसनामी संन्यासी अखाड़े के दण्डी संन्यासी थे। वे एक बुद्धिजीवी, लेखक, समाज-सुधारक, क्रान्तिकारी, इतिहासकार एवं किसान-नेता थे।

भूमिहार ब्राह्मणों से जुड़ जाने के कारण उनकी आरम्भिक राजनैतिक गतिविधियाँ अधिकतर बिहार तथा उत्तर प्रदेश में केन्द्रित थीं और अखिल भारतीय किसान सभा के निर्माण के बाद पूरे भारत में फैलीं। उन्होंने पटना के निकट बिहटा में एक आश्रम बनाया था जहाँ से अपने जीवन के उत्तरार्ध के सारे काम संचालित करते थे।